ISSN: 2277-260X 

International Journal of Higher Education and Research

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कोटि-कोटि प्रणाम - अवनीश सिंह चौहान

abnish2-1मैंने विश्वविद्यालय के एक पदाधिकारी को पिछले दिनों पत्र लिखा, जिस पर प्रतिक्रिया करते हुए मेरे एक प्राध्यापक मित्र ने व्हाट्सएप पर लिखा कि आपको पदाधिकारियों से संबंध खराब नहीं करने चाहिए। मैंने उन्हें कहा कि मैं सत्य को नहीं छोड़ सकता। सत्य के मार्ग पर चलना यदि अपराध है, तो बेशक आप मुझे दोषी मान सकते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि इसीलिए कुछ लोग विश्वविद्यालय में आपको नापसंद करते हैं। मैंने उनको जवाब दिया कि लोगों को नापसंद करने का हक होना चाहिए। मैं ऐसे लोगों को भी पसंद करता हूँ। और एक बात और कहना चाहूंगा- 'जो लोग मेरे बारे में बुरा-भला कहते हैं, मेरी आलोचना करते हैं या कुछ और कपट रखते हों, वे लोग निश्चित रूप से मुझ पर कृपा कर रहे हैं, क्योंकि इससे मेरा ही हित होने वाला है। इससे मेरे पाप तो कटेंगे ही, यदि उनकी बात मुझ तक पहुंची तो हो सकता है मुझे उनकी कोई बात अच्छी लग जाए और उससे मेरा कल्याण हो जाए। ऐसे सभी महानुभावों को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं।'


 

 

 

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